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अनुशरणकर्ता

26 Aug 2010

वक़्त का पहिया

वो रात न रही, बरसात न रही 
सब कुछ बदल गया वो बात न रही
वक़्त यूँ गुजरा कि सब देखते रहे 
जो सूरमा थे उनकी कुछ बिसात न रही
बेवफाई किसने की शायद नहीं पता 
पर उनकी हमारी वो मुलाकात न रही 
चुपचाप खड़ी मौत का जब छाया अँधेरा 
जीवन के उजाले की कुछ औकात न रही 
सब लौट गए अपने घर मुझको विदा करके 
फिर उसके बाद वो कभी बारात न रही 

1 comment:

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