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अनुशरणकर्ता

12 Jul 2010

दर्द की इक लहर


वो गए एच ड़ी की दिल मजबूर बनकर रह गया 
जख्म कुछ ऐसा मिला नासूर बनकर रह गया
गम भुलाने के लिए दूजे को साथी चुन लिया
फिर से दिल टूटा की इक दस्तूर बनकर रह गया

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उम्र उनकी यूं  बढे की मुझसे थोड़ी कम मिले 
जिससे मेरी मेरी मौत का न उनको कोई गम मिले 

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रात से सुबह  का आना, सुबह से शाम का आना
आँख से अनवरत बारिश लवों पर नाम का आना 
निगाहें देखती राहें तेरे पैगाम का आना 

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हुज़ूर गम के दिए दिल में मेरे जलते रहे 
अँधेरा राहों में रहा बाकी फिर भी मंजिल की ओर चलते रहे 
कारवां सामने से जब निकल गया एच ड़ी 
हम सारी  ऊम्र हाथ मलते रहे 

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