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अनुशरणकर्ता

20 Jul 2010

इश्क की हद (हास्य कविता)

कैसे करूं इजहार इश्क का मै इतना शरमाऊँ
दिल करता है तेरी गली का कुत्ता बन जाऊं
तेरे इशारे पर  भौंकू मै तू बोले तो काटूं
तू बोले तो शांत रहूँ और बोले तो चिल्लाऊं
दिल करता है ...........
जहाँ जहाँ तेरे चरण पड़े, मै उसी धुल में लोटूं
जो तेरे घर से जुड़ा हुआ उस गटर में रोज़ नहाऊं
दिल करता है ...........
तेरी गली के जितने आशिक सबको मार भगाऊँ
तेरे घर की दीवारों से अपने बदन खुजाऊँ
दिल करता है ...........
जब तू देखे खिड़की से मै अपनी पूंछ हिलाऊँ
ऐसे सपनो की दरिया में गोते रोज़ लगाऊँ
दिल करता है ...........

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