कही कोई डाकू छिपा साधुओं के वेश में
कहीं डाकुओं में छिपा संत बोलता है जी
कहीं तो किसी के लिए मंजिल ख़तम हुई
कहीं पर आसमा अनंत बोलता है जी
कहीं तो गरीबी चुपचाप खड़ी देख रही
कहीं पर अमीरी का घमंड बोलता है जी
कहीं अबला पिसे इस सरफिरे समाज में
कहीं पर काली का प्रचंड बोलता है जी
इक बीत जाएगा तो दूसरा नया शुरू
ऋतुओं का राजा ये बसंत बोलता है जी
कभी मत भूलो तुम अपनी औकात को
आज इस कविता का अंत बोलता है जी
कहीं डाकुओं में छिपा संत बोलता है जी
कहीं तो किसी के लिए मंजिल ख़तम हुई
कहीं पर आसमा अनंत बोलता है जी
कहीं तो गरीबी चुपचाप खड़ी देख रही
कहीं पर अमीरी का घमंड बोलता है जी
कहीं अबला पिसे इस सरफिरे समाज में
कहीं पर काली का प्रचंड बोलता है जी
इक बीत जाएगा तो दूसरा नया शुरू
ऋतुओं का राजा ये बसंत बोलता है जी
कभी मत भूलो तुम अपनी औकात को
आज इस कविता का अंत बोलता है जी