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अनुशरणकर्ता

8 Dec 2010

मिल जाए गर साथ आपका ....

हम अपने वतन के जितने भी, नेता बेकार बदल देंगे
मिल जाए गर साथ आपका तो संसार बदल देंगे

नैतिकता कमजोर हुई और सदाचार भी कहीं सो गया
इस नेटवर्किंग की दुनिया में,  बिकता प्यार बदल देंगे

कोई भूखा सोता है तो कोई बोतल में जीता है
हम सब मिलकर जनसँख्या का  बढ़ता आकर बदल देंगे

दौलत वालों का मान बढ़ा पर सद्ज्ञानी का मोल नहीं
हम अपने वतन की शिक्षा का बढ़ता ब्यापार बदल देंगे

धर्म और भाषा पर अपनी राजनीति क्यों सेंक रहे,
भाषा और मजहब से बनती हर दीवार बदल देंगे

आओ मिलकर करें ये वादा हर कर्त्तव्य निभाएंगे
जो गैरों का करे अन्भला वो अधिकार बदल देंगे

सारी दौलत अपनों को देकर घुट घुट कर जो जीते हैं
सारे बड़े बुजुर्गों का, घटता आदर सत्कार बदल देंगे

मिल जाए गर साथ आपका ....तो संसार बदल देंगे

2 Dec 2010

तुम ठहरो मै आता हूँ

इक जुगनू सी चमक लिए मै इधर उधर मंडराता हूँ
तेज रौशनी से छिपकर मै परछाई बन जाता हूँ

अरमानो की लाठी लेकर चार कदम तो चलता हूँ
नाकामी ही मंजिल होगी सोच के ये थक जाता हूँ

बेदर्द जमाने से बचने की सबको नसीहत देता हूँ
पर जाने क्यों इस चक्कर में खुद मै ही फंस जाता हूँ

अपने करियर की गाडी मै दूर शहर में ले जाकर
रिश्तों के कच्चे धागे से फिर पीछे  खिंच जाता हूँ

मै ऐसा आंवारा बादल जिसमे कुछ बरसात नहीं
अपनी काली घटा दिखाकर हवा में फिर उड़ जाता हूँ

मेरी खुशबू पवन ले गया फिर भी मुझको फूल कहें  
दिल में अपने दर्द छिपाए मंद मंद मुस्काता हूँ

सारे रस्ते बंद हो गए अब बाबा बन जाऊँगा
दिन भर रब को याद करूंगा सोच के खुश हो जाता हूँ

तुम ठहरो मै आता हूँ ,, है राह कठिन घबराता हूँ

 

29 Nov 2010

सिलसिला


मेरा जाना होता, उनका आना होता 
होता सिलसिला तो फिर ये फ़साना होता 

अगर मिल जाती मुझे एक नज़र चाहत की 
तो ये एच. डी. कभी, बेगाना होता 

अगर देखता उनकी खिलती हुई मुस्कान 
तो ये भंवरा कलियों का दीवाना होता

जाने कब हो गया होता फ़ना इस दुनिया से 
गर उनकी यादों का आशियाना होता

31 Oct 2010

मैंने इंग्लिश सीखा,

  • एक बार मेरे टीचर ने मुझसे कहा बेटा तुम इंग्लिश पर थोडा ध्यान दिया करो अगर इंग्लिश सीख लोगे तो, जिंदगी में बहुत तरक्की मिलेगी,  
  • मैंने ठान लिया कि मुझे इंग्लिश सीखना है, मन विश्वास लिए मै एक नजदीक के  चौराहे पर पहुंचा, वहां पहुच कर मैंने एक पान वाले से पूछा मुझे इंग्लिश सीखनी है कहाँ जाऊं, पान वाले ने कहा अगली गली में चले जाओ जहाँ पर जादा भीड़ लगी होगी वही पर पूछ लेना 
  • मै उस गली में पंहुचा , एक लम्बी लाइन लगी थी लोग धक्का मुक्की कर रहे थे, बड़ी मसक्कत के बाद मै उस व्यक्ति के पास पहुंचा जो अन्दर बैठा था और  खिड़की से देख रहा था, मैंने पहुचते ही उससे पूछा मुझे इंग्लिश सीखनी है, उसने कहा 60 रुपये दीजिये, मैंने दे दिए , 
  • खुदा कसम, उस दिन के बाद मैंने इस कदर इंग्लिश सीखा कि देशी को हाथ नहीं लगाया 
प्रस्तुत गद्य का  किसी भी वास्तविकता से कोई भी ताल्लुक नहीं है    महज हास्य  के लिए है

29 Oct 2010

वो चार आदमी

  • मै चार लोगों से बहुत जादा परेशान हूँ 
  • मैंने अपनी पढाई लिखाई, अपना करियर सब इसलिए बनाया की चार लोगों के बीच मेरी इज्जत बनी रहे 
  • एक बार मै दिल्ली जा रहा था तो मेरे पिता जी ने कहा बेटा संभल कर जाना  चार लोगों के बीच तुम्हे जाना है 
  • मै अपने दोस्त के साथ एक पार्क घूम कर लौट रहा था तो दोस्त बोला अगले संडे फिर आयेंगे, मैंने पूंछा क्यों , उसने कहा यहाँ चार लोगों से मुलाकात होती है अच्छा लगता है 
  • मै परेसान होकर अपने एक दोस्त सरदार जगजीत सिंह के पास गया और बोला,  पाजी ये चार लोग मेरा पीछा कब छोड़ेंगे, 
  • सरदार जी ने कहा, जिस दिन  वही चार लोग  आपको को शमसान में छोड़ेंगे उस दिन वो आपका पीछा छोड़ देंगे  

26 Aug 2010

वक़्त का पहिया

वो रात न रही, बरसात न रही 
सब कुछ बदल गया वो बात न रही
वक़्त यूँ गुजरा कि सब देखते रहे 
जो सूरमा थे उनकी कुछ बिसात न रही
बेवफाई किसने की शायद नहीं पता 
पर उनकी हमारी वो मुलाकात न रही 
चुपचाप खड़ी मौत का जब छाया अँधेरा 
जीवन के उजाले की कुछ औकात न रही 
सब लौट गए अपने घर मुझको विदा करके 
फिर उसके बाद वो कभी बारात न रही 

20 Aug 2010

नसीहत

बयां किससे करूं मै दर्दे दिल, बेरहम दुनिया में 
किसी से दर्द मिलता है , तो कोई बेदर्द मिलता है।
अमीरी वतन पर छाई, भूख से मर रहे फिर क्यों 
कि जिसके पास हो दौलत उसी को कर्ज मिलता है। 
मिटाने जो चले हैं इस जहाँ से भेद मजहब का 
उनसे बस जाति के ही नाम पर कुछ फर्ज मिलता है। 
नसीहत याद आती है, वफादारी की तब एच डी
जब हमें गुमराह करने को कोई खुदगर्ज मिलता है ।
हकीकत को बिना समझे बड़े बेकदर बन बैठे 
सदियाँ गुजरने पर कोई हमदर्द मिलता है ।

14 Aug 2010

Even Then

Every Try to get success, you have done.
But there was still a fun.
If now, further possibilities are non.
Even then, You have to win.

20 Jul 2010

मिले जब भी फुरसत ........

मिले जब भी फुरसत तुम्हे दूसरों से, तो करना कभी याद, आना कभी 
झुकाके के निहाहें बस दो चार आंसू ,मेरी याद में भी बहाना कभी 
मिले जब भी फुरसत .......
वो चेहरा गुलाबी, अदाएं खिताबी, निगाहें कटीली वो ऑंखें शराबी 
है वर्षों से प्यासी जो मेरी तमन्ना, तू छलकाके के इक घुट पिलाना कभी । 
मिले जब भी फुरसत ........
अंधेरों में यूँ खो गयी मेरी राहें, जरा से उजाले को तरसी निगाहें 
चिराग अपनी आँखों में ख्वाबों के  लेकर जलाना  कभी, बुझाना कभी 
मिले जब भी फुरसत ..........
मिला क्या हमें एक फरियाद करके बने याद खुद हम तुम्हे याद करके
यादों की मेरी, इक तस्वीर दिल में बनाना कभी , मिटाना कभी 
मिले जब भी फुरसत .............. 

इश्क की हद (हास्य कविता)

कैसे करूं इजहार इश्क का मै इतना शरमाऊँ
दिल करता है तेरी गली का कुत्ता बन जाऊं
तेरे इशारे पर  भौंकू मै तू बोले तो काटूं
तू बोले तो शांत रहूँ और बोले तो चिल्लाऊं
दिल करता है ...........
जहाँ जहाँ तेरे चरण पड़े, मै उसी धुल में लोटूं
जो तेरे घर से जुड़ा हुआ उस गटर में रोज़ नहाऊं
दिल करता है ...........
तेरी गली के जितने आशिक सबको मार भगाऊँ
तेरे घर की दीवारों से अपने बदन खुजाऊँ
दिल करता है ...........
जब तू देखे खिड़की से मै अपनी पूंछ हिलाऊँ
ऐसे सपनो की दरिया में गोते रोज़ लगाऊँ
दिल करता है ...........

19 Jul 2010

मै कवि हूँ !

 मै कवि हूँ ! 
कल्पना में सच दिखाने  की छवि हूँ 
मन तो उजला है मगर काला बदन है 
हर बुराई जीत लेने की लगन है 
वैसे तो अंधेरो में भटकता रवि हूँ .. मै कवि हूँ ! 
महज कुछ  शब्दों का श्रृंगार लेकर 
समर में बस इक कलम, हथियार  लेकर
जाने क्यों दुनिया के गम पर मै दुखी हूँ  .. मै कवि हूँ ! 

12 Jul 2010

दर्द की इक लहर


वो गए एच ड़ी की दिल मजबूर बनकर रह गया 
जख्म कुछ ऐसा मिला नासूर बनकर रह गया
गम भुलाने के लिए दूजे को साथी चुन लिया
फिर से दिल टूटा की इक दस्तूर बनकर रह गया

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उम्र उनकी यूं  बढे की मुझसे थोड़ी कम मिले 
जिससे मेरी मेरी मौत का न उनको कोई गम मिले 

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रात से सुबह  का आना, सुबह से शाम का आना
आँख से अनवरत बारिश लवों पर नाम का आना 
निगाहें देखती राहें तेरे पैगाम का आना 

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हुज़ूर गम के दिए दिल में मेरे जलते रहे 
अँधेरा राहों में रहा बाकी फिर भी मंजिल की ओर चलते रहे 
कारवां सामने से जब निकल गया एच ड़ी 
हम सारी  ऊम्र हाथ मलते रहे 

10 Jul 2010

एक शादी सुदा व्यक्ति का दर्द

वो खुशनुमा किस्से बहुत ग़मगीन हो गए
हम स्वीट थे पहले की अब नमकीन हो गए
 मुझको बदल दिया फिर बोली पहले जैसे नहीं रहे
मैंने कहा कभी मत कहना पहले थे अब नहीं रहे 
पहले नज़रों में बसते थे अब आँखों में चुभ जाते हैं
पहले खाते पीते घर के अब पेटू कहलाते हैं
देखा नज़ारा दोस्त सभी मुझपर हसते इठलाते है 
पहले तीरंदाज बड़े अब चिड़ीमार कहलाते है 
 कह एच डी कविराय जगत की यही रीति है 
पास रहे तो नफरत दूर से बड़ी प्रीति है 

एक नया हमसफ़र

वो चंचल सी एक परी मेरे कमरे में रहती है 
मुझे देखकर मुस्काती , और मन ही मन कुछ कहती है 
मानो हिरनी दौड़ रही हो, जब  वो लहराकर चलती है 
कुछ पल ठहर के मुझको देखे फिर कुछ दूर निकलती है
अपनी कजरारी आँखें फिर चारों ओर घुमाती है
मै जब जाऊं पास कभी तो शरमाकर छिप जाती है 
घर के कीट पतिंगे जो भी, सब को मार भागाती है 
मै ऑफिस में रहता हूँ जब वो गाना गाती है 
उसकी मधुरिम धुन सुनने को मेरा मन तरसता है 
अबके बरस ये सावन मेरी आँखों से बरसता है 
बिना रजाई कम्बल के वो सारे मौसम सहती है 
जाने क्यों सारी दुनिया उसे छिपकली कहती है    

चाँद के लिए सन्देश

कोई जाकर चाँद से कह दे, मेरे आँगन भी आ जाए
संग में अपने दो छोटे से, तारों को भी ले आये
जब पुरवाई चलती है, मन में एक आहट होती है
किसी की यादों में ले जाकर  पलकें नम कर देती है 
अपना किसे कहें इस जग में आकर मुझे बता जाये  
कोई जाकर चाँद से कह दे, ................................
सावन की अँधेरी रातों में दिल बोझिल सा हो जाता है
अपने अधरों पर सिसक लिए तूफां का झोंका आता है
इन गम की अँधेरी राहों में, खुशियों का दीप जला जाए
कोई जाकर चाँद से कह दे, ................................

हे प्रभु मुझको पास बुलालो

हे प्रभु मुझको पास बुलालो मै इस जग से ऊब गया
दुराचार व्यभिचार प्रखर है सत्य अहिंसा डूब गया
झूठ भरा है कण कण में अमर प्रेम व्यापार हुआ
भाषाओँ पर राजनीति, वो राष्ट्र धर्मं बेकार हुआ
सत्य अहिंसा के साधक बापू का सपना टूट गया
हे प्रभु मुझको पास बुलालो ........................
जिसने सौ कत्लें कर डाली वो नेता बन जाता है
संसद की कुर्सी मिलते ही, बनता विष्व विधाता है
पहन के खाड़ी का कुरता सारी जनता को लूट गया
हे प्रभु मुझको पास बुलालो ........................
मन की ज्वाला कहती है, अपना कर्त्तव्य दिखा  दूं मै
सत्य, अहिंसा, राष्ट्र प्रेम सबको जाकर सिखा दूं मै 
एच  डी, अपनी कलम रोक दो उगता सूरज डूब गया 
हे प्रभु मुझको पास बुलालो ........................  

9 Jul 2010

सवाल

हे पुष्प तेरी कलियाँ मुझको क्यों अपने पास बुलाती हैं
हे हवा तेरी मदहोशी मेरे मन पर क्यों छा जाती है
हे तारों इतनी दूर खड़े क्यों एकटक मुझे निहार रहे
क्या अपने पास बुलाने को तुम अब तक खड़े पुकार रहे
हे सूरज दिन भर दर्शक बन तुम मेरे साथ बिचरते हो
सब कुछ देख रहे ऊपर से पर न्याय नहीं तुम करते हो
हे चाँद सही से तुम अपना क्यों काम नहीं कर पाते हो
कुछ दिन अपनी चमक दिखाकर जाने कहाँ छिप जाते हो
हे धरा बताओ क्यों लोगों के हर तांडव को सहती हो
सबका बोझ उठाकर भी तुम कभी नहीं कुछ कहती हो