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अनुशरणकर्ता

10 Apr 2013

गुस्ताखी कलम की


कभी रंगीनियों में आंसुओं की धार पैदा कर

कभी गमगीनियों में खुशियों की बहार पैदा कर


भीड़ में रहकर भी हैहर कोई अकेला

दिल में , खुद के वास्ते कुछ  प्यार पैदा कर


मुरझाये हुए चेहरे भी खिल उठे ऐसे

पतझड़ में इक बसंत की बहार पैदा कर


ये बेरहम दुनियातुझे पीछे धकेलेगी

अगर आगे निकलना है तो फिर रफ़्तार पैदा कर


करनी है अगर पूरी ख्वाहिश- -अमन,

हर शख्श के दिलों में हवलदार पैदा कर

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मुझे अहसास  था बेवफाई का

नहीं भूला वो दर्दे गम जुदाई का I


जहाँ की भीड़ जब बेकदर बन बैठी

भला मै साथ कैसे छोड़ दूं तन्हाई का  I


कैसे कहें अहसास अपनी जिन्दगी का

मुझे बस याद है वो दिन सगाई का  I


बिना जिसके गुजरती थीं नहीं रातें

करू क्या गर्मियों में इस रजाई का  I

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चाहतें ही गुनाह करती हैं

जिंदगी को तबाह करती हैं


किसी के जाने की तकलीफ हुई क्यों दिल को

इक झलक देखने की जिद निगाह करती हैं

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25 Mar 2013

होली

रह जाए अबके फीका रंग होली में
हर  कली खेलेगी अबके जंग होली में 

हर खता हर दूरियां हम भूल जायेंगे 
सब रहेंगे साथ मिलकर मुस्करायेंगे
सबको सिखायेंगे नया, ये ढंग होली में
 
रह जाए अबके ............................



दोस्तों अब दोस्ती ऐसे निभाएंगे 
दुश्मनों से दुश्मनी भी भूल जायेंगे 
दिल में रहेगी ऐसी कुछ उमंग होली में 
 
रह जाए अबके ............................

रह रह के मेरा मन उन्हें भी याद करता है 
हर घडी मिलने के ही फ़रियाद करता है 
उड़ने दो अपने प्यार की पतंग होली में 
रह जाए अबके ............................

एच डी, उठो इस जगत को  आदित्य से भर दो 
थामकर अपनी कलम साहित्य से भर दो 
कोई दारू, कोई भंग होली में  
रह जाए अबके ............................