किसी से दर्द मिलता है , तो कोई बेदर्द मिलता है।
अमीरी वतन पर छाई, भूख से मर रहे फिर क्यों
कि जिसके पास हो दौलत उसी को कर्ज मिलता है।
मिटाने जो चले हैं इस जहाँ से भेद मजहब का
उनसे बस जाति के ही नाम पर कुछ फर्ज मिलता है।
नसीहत याद आती है, वफादारी की तब एच डी
जब हमें गुमराह करने को कोई खुदगर्ज मिलता है ।
हकीकत को बिना समझे बड़े बेकदर बन बैठे
सदियाँ गुजरने पर कोई हमदर्द मिलता है ।
laajwaab hain aap aur aapki shayari
ReplyDeleteyours blog is very good...
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बहुत अच्छी सोच है धन्यवाद्|
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