सब कुछ बदल गया वो बात न रही
वक़्त यूँ गुजरा कि सब देखते रहे
जो सूरमा थे उनकी कुछ बिसात न रही
बेवफाई किसने की शायद नहीं पता
पर उनकी हमारी वो मुलाकात न रही
चुपचाप खड़ी मौत का जब छाया अँधेरा
जीवन के उजाले की कुछ औकात न रही
सब लौट गए अपने घर मुझको विदा करके
फिर उसके बाद वो कभी बारात न रही
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