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अनुशरणकर्ता

20 Oct 2012

सरकार से बता देना कुछ आंसू दिखते नहीं

      मंगरू ,  मन ही मन कुछ सोचता कुछ बुदबुदाता हुआ चला जा रहा था शायद, महंगाई से लड़ने की तैयारिया बना रहा था , उसे ये अच्छी तरह से पता था कि महंगाई नामक दैत्य बहुत खतरनाक है उससे लड़ा नहीं जा सकता परन्तु अपने मन को आश्वाशन देते हुए कि  शायद आज बड़ी बाजार है सब्जी सस्ती मिलेगी, 
     उसने अपनी रफ़्तार तेज किया , और बाजार में ढेर सारी  दुकाने देखकर खुश हुआ कि  आज तो बहुत सामान खरीदकर ले जाऊँगा , एक दुकानदार से आलू का भाव    पूछा तो पता चला कि  ये तो कल के भाव से 5 रुपये अधिक है कारण पूछने पर  दूकानदार ने कहा भाई महंगाई देख रहे हो कितनी तेज बढ़ रही है, एक के बाद एक सब दुकानों पर पूछता गया धीरे धीरे बढ़ता रहा पूरी बाजार को पार करने के बाद भी मुस्किल से डेढ़ किलो सब्जी खरीद सका/, कई अन्य दुकानों पर भी  लोग महंगाई का उलाहना दे रहे थे  
    फिर अपने मन को मसोसता  हुआ अपने घर की तरफ धीरे धीरे बढ़ चला अचानक उसे याद आया कि अरे गैस सिलिंडर में गैस ख़तम होने वाली है, दो दिन पहले ही अखबार वालों ने छाप दिया कि  भैया सिलिंडर महंगा हो गया , अब हमको तो मालूम नहीं कि ये सब चीजों के दाम कौन बढाता  है पर आज का भाव कुछ और है और कल का भाव कुछ और खैर छोडिये, ये उठा पटक तो चलती रहती है मगर अफ्शोश तो ये है कि आज तक किसी भी चीज का दाम बढ़ने के बाद घटते हुए नहीं देखा, हो सकता है ऐसी  ख़बरें अखबार वालों को न  मिल पाती होंगी , हालाँकि मैंने कल ही तो एक अखबार बांटने वाले से बोला था कि मेरी कुछ बातें मंत्री जी के दफ्तर वाले अख़बार में छाप देना मगर उसने  सुना ही नहीं . अब तो एक रोटी बनाने के लिए न जाने कितनी मेह्नत  करनी पड़ती है , गैस का भाव बढ़ने वाला है ये सुनते ही गैस के फुटकर विक्रेताओं ने  दाम 125 रुपये प्रति किलो से भी अधिक  कर दिया,....... 
लग रहा  है ये शहर छोड़ कर जाना ही पड़ेगा  भले ही लकडिया जलाने से वातावरण दूषित होता है और धुएं से आंसू निकलते हैं  परन्तु एक गरीब आदमी को एक वक्त की रोटी पकाने के लिए खून के आंसू रोने तो नहीं पड़ते ,
     करीब पांच छः महीने पाहिले सुना था सरकार बदल गई , तो दिल को एक तसल्ली मिली थी की शायद अब कुछ तरक्की के रास्ते खुल जायेंगे, लेकिन आज तक मै  यही नहीं जान पाया कि  सरकार रहते कहाँ हैं , एक आदमी बता रहा था कि अमिताभ बच्चन जी भी एक बार सरकार बने थे , मगर वो तो बम्बई चले गए हैं  अब उनके मुलाकात करना इतना आसान  तो है नहीं , जब मेरे पास टिकट भर को पैसे हो जायेंगे तो मै बम्बई जाकर उनसे अपने दिल की बातें जरूर  कहूँगा  , अचानक याद आ गया कि  मैंने अपने छोटे से बच्चे के लिए  चाकलेट तो लिया ही नहीं जेब में हाथ डाला तो पैसे सब ख़तम , 
    घर में पत्नी सवाल करेगी तो क्या जवाब दूंगा कि पैसे ख़तम हो गए  इस लिए चाकलेट नहीं लाया ,अरे नहीं इससे उसके दिल पर क्या बीतेगी जिसने मुझे और मेरे स्तर को मजबूत करने के लिए पिछले तीन सालों से अपने सूने पड़े गले और कानों के लिए कुछ नहीं माँगा , मै  उससे झूठ बोल दूंगा कि  मै  भूल गया , मगर शायद वो इन सब चीजों से अनजान नहीं है खैर इन सब बातों में क्या रखा है अबकी बार मै दिन रात मेहनत  करके  उसके लिए करवा चौथ के मौके पर एक अच्छी सी साडी खरीद कर दे दूंगा , 
     विचारों में इस कदर खो गया कि  रस्ते का पता ही नहीं चला घर बिलकुल नजदीक आ गया, घर में घुसते समय दिल में एक मीठासा दर्द छिपाए, वो अपने आप को मजबूती देने की कोशिश कर रहा था कि  अपने आंसुओं को बाहर नहीं निकलने देगा  

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