क्या तुम मिलना चाहोगे उस गरीब से,
जिसने देखा है नेताजी को करीब से,
प्रेम नगर को जाने वाली इक रैली थी
मेरी भी एंट्री उसमे पहली पहली थी
राम खेलावन यादव की ट्रेक्टर ट्राली थी
लगभग एक बज गया पर अब तक खाली थी
मैंने कहा खेलावन भैया कब जायेंगे
चल देंगे जैसे ही परचा चिपकायेंगे
मंगरू, पुत्तन, भुर्रा, गुड्डू सब आये हैं
नेता जी से आज मिलेंगे हर्षाये हैं
परचा को चिपकाकर बोले लाल बिहारी
चलने की अब तुम सब कर लो तैयारी
हांथों में पार्टी का झंडा, जोर से सब करते आवाज
राजनितिक पार्टी जिंदाबाद -२
प्रेम नगर में जाकर करते इंतजार है
नेताजी कब आयेंगे सब बेक़रार है
कुछ ही पल में नेता जी की कार आ गयी
भूल गए क्या हम सब की सरकार आ गयी
हाथ जोड़ कर करने लगे सभी अभिवादन
जिंदाबाद के नारे से करते अभिनन्दन
कुछ लोगों ने उनको एक माला पहनाया
तब मंगरू ने उस माला पर नज़र घुमाया
माला में इक इक हज़ार के नोट जड़े थे
देख नज़ारा मंगरू के अब कान खड़े थे
उसको याद आ गए अपने भूखे बच्चे
जो अब तक थे अबोध और मन के सच्चे
उम्मीद भरी नज़रों से सब कुछ देख रहा था
कम से कम इक तो दे देंगे, सोच रहा था
इन पैसों से मेरे बच्चों की भूख मिटेगी
कर लूँगा रोज़गार मेरी किस्मत चमकेगी
नेता जी ने दिया विरोधी पार्टी पर इक भाषण
आज हटा दूंगा मैं गरीबी और गरीब का शोषण
नहीं रहेगा कोई गरीब और गरीबी मिट जायेगी
मैं छोडूंगा एक मुहिम सारी चिंताएं हट जाएँगी
बड़ी बड़ी बातें कहकर तो नेताजी प्रस्थान कर गए
पर वो ऐसा क्या बोल गए की मंगरू को हैरान कर गए
मंगरू बहुत सोचकर बोला ये क्या मुहिम चलाएंगे
महंगाई गर और बढ़ गयी तो खुद गरीब मिट जायेंगे
कोई पड़ोसन शापिंग करके जब अपने घर आती है
मंगरू की पत्नी सरला, बस देख उन्हें ललचाती है
काश मेरा मंगरू भी अब इतना अमीर हो जाए
रोज़ करें शापिंग, मुझको गाड़ी में रोज़ घुमाये
सुबह सबेरे मंगरू को वो ताने रोज़ सुनाती है
पर मंगरू मेरा सौहर है, इतने में ही खुश हो जाती है
ऐसे ही कितने मंगरू रोटी के लिए तरसते हैं
लेकिन नेता जी के बादल, रिश्तों के लिए बरसते हैं ।