हे प्रभु मुझको पास बुलालो मै इस जग से ऊब गया
दुराचार व्यभिचार प्रखर है सत्य अहिंसा डूब गया
झूठ भरा है कण कण में अमर प्रेम व्यापार हुआ
भाषाओँ पर राजनीति, वो राष्ट्र धर्मं बेकार हुआ
सत्य अहिंसा के साधक बापू का सपना टूट गया
हे प्रभु मुझको पास बुलालो ........................
जिसने सौ कत्लें कर डाली वो नेता बन जाता है
संसद की कुर्सी मिलते ही, बनता विष्व विधाता है
पहन के खाड़ी का कुरता सारी जनता को लूट गया
हे प्रभु मुझको पास बुलालो ........................
मन की ज्वाला कहती है, अपना कर्त्तव्य दिखा दूं मै
सत्य, अहिंसा, राष्ट्र प्रेम सबको जाकर सिखा दूं मै
एच डी, अपनी कलम रोक दो उगता सूरज डूब गया
हे प्रभु मुझको पास बुलालो ........................
very nice poem
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