हे पुष्प तेरी कलियाँ मुझको क्यों अपने पास बुलाती हैं
हे हवा तेरी मदहोशी मेरे मन पर क्यों छा जाती है
हे तारों इतनी दूर खड़े क्यों एकटक मुझे निहार रहे
क्या अपने पास बुलाने को तुम अब तक खड़े पुकार रहे
हे सूरज दिन भर दर्शक बन तुम मेरे साथ बिचरते हो
सब कुछ देख रहे ऊपर से पर न्याय नहीं तुम करते हो
हे चाँद सही से तुम अपना क्यों काम नहीं कर पाते हो
कुछ दिन अपनी चमक दिखाकर जाने कहाँ छिप जाते हो
हे धरा बताओ क्यों लोगों के हर तांडव को सहती हो
सबका बोझ उठाकर भी तुम कभी नहीं कुछ कहती हो
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