वो चंचल सी एक परी मेरे कमरे में रहती है
मुझे देखकर मुस्काती , और मन ही मन कुछ कहती है
मानो हिरनी दौड़ रही हो, जब वो लहराकर चलती है
कुछ पल ठहर के मुझको देखे फिर कुछ दूर निकलती है
अपनी कजरारी आँखें फिर चारों ओर घुमाती है
मै जब जाऊं पास कभी तो शरमाकर छिप जाती है
घर के कीट पतिंगे जो भी, सब को मार भागाती है
मै ऑफिस में रहता हूँ जब वो गाना गाती है
उसकी मधुरिम धुन सुनने को मेरा मन तरसता है
अबके बरस ये सावन मेरी आँखों से बरसता है
बिना रजाई कम्बल के वो सारे मौसम सहती है
जाने क्यों सारी दुनिया उसे छिपकली कहती है
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