वो गए एच ड़ी की दिल मजबूर बनकर रह गया
जख्म कुछ ऐसा मिला नासूर बनकर रह गयागम भुलाने के लिए दूजे को साथी चुन लियाफिर से दिल टूटा की इक दस्तूर बनकर रह गया
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उम्र उनकी यूं बढे की मुझसे थोड़ी कम मिले
जिससे मेरी मेरी मौत का न उनको कोई गम मिले
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रात से सुबह का आना, सुबह से शाम का आनाआँख से अनवरत बारिश लवों पर नाम का आनानिगाहें देखती राहें तेरे पैगाम का आना
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हुज़ूर गम के दिए दिल में मेरे जलते रहे
अँधेरा राहों में रहा बाकी फिर भी मंजिल की ओर चलते रहे
कारवां सामने से जब निकल गया एच ड़ी
हम सारी ऊम्र हाथ मलते रहे
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